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शनिवार, सितंबर 01, 2018

इन्द्रजाल--

इन्द्रजाल--

इंद्रजाल एक ऐसा नाम है जिसे सुनते ही शरीर में एक रोमांच पैदा हो जाता है। प्राचीनकाल में तंत्र , जादू, काला जादू, भ्रम और रहस्यमय विद्या के लिए इंद्रजाल शब्द प्रयुक्त होता था।

हमारे देश में इंद्रजाल शब्द के अनेक अर्थ और रूप में प्राचीन काल से ही प्रचलित रहे है |प्राचीन भारत में इंद्रजाल का एक अलग ही स्वरूप विद्यमान रहा है , जिसके अनुसारइंद्रजाल का अर्थ है - इन्द्रियों का जाल या आवरण ! अर्थात वह विद्या जिससे इन्द्रिय जालसे ढकी सी आच्छादित हो जाये ! इंद्र और सम्बर इस विद्या के आचार्य माने जाते है !प्राचीन समय में ऐसे खेल राजाओं के सामने किए जाते थे। बीसवीं शताब्दी केआरम्भिक दिनों तक कुछ लोग ऐसे खेल करना जानते थे, परंतु अब यह विद्या नष्ट सीहो चुकी है।

कुछ संस्कृत नाटकों और गाथाओं में इन खेलों का रोचक वर्णन मिलता है।जादूगर दर्शकों के मन और कल्पनाओं को अपने अभीष्ट दृश्य पर केंद्रीभूत कर देता है।अपनी चेष्टाओं और माया से उनको मुग्ध कर देता है। जब उनकी मनोदशा ओर कल्पनाकेंद्रित हो जाती है तब यह उपयुक्त ध्वनि करता है। दर्शक प्रतीक्षा करने लगता है किअमुक दृश्य आनेवाला है या अमुक घटना घटनेवाली है। इसी क्षण वह ध्वनिसंकेत औरचेष्टा के योग से सूचना देता है कि दृश्य आ गया या घटना घट रही है। कुछ क्षण लोगों कोवैसा ही दीख पड़ता है। तदनंतर इंद्रजाल समाप्त हो जाता है।

प्राचीन भारत में इंद्रजाल की अद्भुत आश्चर्यजनक लीला सारे संसार में प्रसिद्द थी !

अथर्ववेद ८.८.५ में इन्द्र के जाल का वर्णन किया गया है जिसकी सहायता से वह असुरोंको वश में करता है। इस सूक्त में इन्द्र के जाल को बृहत् तथा अन्तरिक्ष आदि कहा गया है।

जैमिनीय ब्राह्मण १.१३५ के अनुसार बृहत् जाल की साधना से पूर्व रथन्तर की साधनाकरनी पडती है। रथन्तर द्वारा अन्न प्राप्त होता है जो रथ रूपी अशना/क्षुधा को शान्तकरता है। रथन्तर तथा अन्तरिक्ष आदि को स्व-निरीक्षण, अपने अन्दर प्रवेश करना,एकान्तिक साधना का प्रतीक कहा जा सकता है।


योगवासिष्ठ में इन्द्रजाल के आख्यानके माध्यम से जाल अवस्था से पूर्व रथन्तर की साधना को दर्शाया गया है।

इसे इन्द्रजालका पूर्व रूप कहा जा सकता है।

इन्द्रजाल का उत्तर रूप क्या होगा, यह अथर्ववेद ८.८.५ केआधार पर अन्वेषणीय है।



शब्दकल्पद्रुम कोश में इन्द्रजाल शीर्षक के अन्तर्गतइन्द्रजालतन्त्र नामक पुस्तक को उद्धृत किया गया है जिसमें इन्द्रजाल के अधिपतिजालेश रुद्र का उल्लेख आया है।

वर्तमान में इंद्रजाल शब्द के मुख्य रूप से तीन अर्थ प्रचलन में है !

प्रथम :इंद्रजाल नामक पुस्तक के नाम से यह शब्द सर्वाधिक प्रसिद्ध है अर्थात जिसग्रन्थ में अनेक उपयोगी सिद्धि देने वाले मंत्र - यन्त्र - तंत्र , शांतिक - वशीकरण -स्तम्भन -विदेषण -उच्चाटन - मारण आदि षट्कर्म प्रयोग विधि तथा नाना प्रकार केकौतुक व रंग आदि प्रयोजनीय वस्तुओ आश्चर्य रूप खेल , तमाशे , वैद्यक सम्बन्धीओषधिया रसायन आदि का वर्णन हो उस शास्त्र को इंद्रजाल कहा जाता है ! अभी तकप्राय:जितने भी इंद्रजाल छपे है , उनमे एक न एक त्रुटी पायी जाती है !

द्वितीय :इन्द्रजाल एक समुद्री पौधा है , जिसमें पत्ती नहीं होती। यह एक अमूल्यवस्तु है, इसे प्राप्त करना दुर्लभ है।

इन्द्रजाल की महिमा डामरतंत्र, विश्वसार तंत्र आदिग्रंथों में पाई जाती है। इसे विधिपूर्वक प्रतिष्ठा करके साफ कपड़े में लपेटकर पूजा घर मेंरखने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। इसमें चमत्कारी गुण होते हैं। मान्यता है किजिस घर में इन्द्रजाल होता है। वहां भूत-प्रेत, जादू - टोने का प्रभाव नहीं पड़ता ! इसकेपूजा स्थल पर होने से घर में किसी तरह की बुरी नजर का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसकीलकड़ी को गले में पहनने से हर तरह की गुप्तशक्तियां स्वप्र में साक्षात्कार करती हैं।इन्द्रजाल के दर्शन मात्र से अनेक बाधाएं दूर होती हैं ।

तृतीय :जादू का खेल भी इंद्रजाल कहलाता है। कहा जाता है, इसमें दर्शकों कोमंत्रमुग्ध करके उनमें भ्रांति उत्पन्न की जाती है।

फिर जो ऐंद्रजालिक चाहता है वहीदर्शकों को दिखाई देता है। अपनी मंत्रमाया से वह दर्शकों के वास्ते दूसरा ही संसार खड़ाकर देता है। मदारी भी बहुधा ऐसा ही काम दिखाता है, परंतु उसकी क्रियाएँ हाथ कीसफाई पर निर्भर रहती हैं और उसका क्रियाक्षेत्र परिमित तथा संकुचित होता है। इंद्रजालके दर्शक हजारों होते हैं और दृश्य का आकार प्रकार बहुत बड़ा होता है। ठग लोग जादू केतरीकों का उपयोग अपने छलपूर्ण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए करते हैं.,,इंद्रजाल करने वालेसमूह सम्मोहन की कार्य प्रणाली पर भी कार्य करते है |

कुल मिलाकर इंद्रजाल चमत्कार का एक नाम है ,कौतूहल और आश्चर्य उत्पन्न करता है,असंभव दिखने वाला संभव दीखता है |यह प्राकृतिक शक्तियों का साक्षात्कार कराता हैचाहे वानस्पतिक हो ,मानवीय हो अथवा अलौकिक|...

सिद्ध इंद्रजाल को अपने पास रखने से नजरदोष, ऊपरी बाधा, नकारात्मक शक्तियों और जादू टोने का प्रभाव आदि का प्रभाव क्षीण होता है।

यह प्रबल आकर्षण शक्ति संपन्न है।

अभिमन्त्रित कर ताबीज़ में भर कर धारण करने से सर्वजन पर वशीकरण प्रभाव होता है।

रवि पुष्य नक्षत्र, नवरात्र, होली दीपावली इत्यादि शुभ समय में मंत्रों से इंद्रजाल वनस्पति को मंत्रों से अभिमंत्रित कर साधक अपने कर्मक्षेत्र में और अध्यात्मिक क्षेत्र में लाभ प्राप्त कर सकता है।

घर के मुख्य द्वार पर लगाने से घर में नकारात्मक शक्तियों भूत प्रेत आदि का प्रवेश नहीं होता । वास्तु दोषों का नाश होता है।

रोगी व्यक्ति के दक्षिण दिशा में लगाने से मृत्यु भय नहीं होता और उत्तर में लगाने से स्वास्थ्य लाभ होता है।

दुकान व्यापार स्थल के दक्षिण दिशा में लगाने से व्यापार में उन्नति होती है और दुश्मनों प्रतिद्वंदियों द्वारा किये कराये के असर से बचाव होता है।

तंत्र में जहां एक ओर ये सुरक्षा करता है वहीँ दूसरी ओर इसके घातक प्रयोग भी है जैसे शत्रु को मतिमूढ़ यानि पागल करना, गम्भीर त्वचा रोग लगा देना और रक्त दोष उतपन्न करना।

वही चिकित्सा के क्षेत्र में पारंपरिक चिकित्सा में ये जीवन दायिनी भी है। अन्य वनस्पति यौगिकों के साथ मिलाकर ये लीवर के गम्भीर रोगों और पुरुषों के प्रोस्टेट समस्या और कैंसर के लिये अतिउपयोगी औषधि भी है।

 जानिए कैसे सिद्ध करें इन्द्रजाल को?

 भारत में लाखों घरों में इंद्रजाल स्थापित की हुई मिलेगी मगर ज्यादातर इंद्रजाल show piece से बढ़कर कुछ भी नहीं ।। जबतक सही मुहूर्त में और सही तरीके से इंद्रजाल को सिद्ध नहीं किया जाता तब तक उस के शुभ फल की प्राप्ति नहीं होती

जिस तरह कोई भी देवी - देवता की मूर्ती , श्री यंत्र , कुबेर यंत्र ग्रहों के रत्न इत्यादि को  विधि पूर्वक प्राण ओरतिष्ठा , मंत्र जप ,होम , तर्पण मार्जन आदि जहाँ जो जो जरुरत हो वो ठीक तरीके से ना किया जाये तो पूर्ण फल की प्राप्ति असंभव है । 

 हर चीज़ के लिए अलग अलग मुहूर्त होते हैं और उन्ही मुहूर्त में वो काम किये जाने चाहिए । सिर्फ शुभ मुहूर्त या चौघड़िया देख लेने से कम नही चलता हैं।

 मुहूर्त :- इंद्रजाल को सिद्ध करने के लिए जो प्रयोग दिए गए हैं उनमें से आज हम आपको एक प्रयोग बता रहें हैं । हर ऐसे प्रयोग के लिए निर्धारित तिथि , वार , नक्षत्र का ही उपयोग करना अनिवार्य है ।।

 इंद्रजाल के प्रयोग के लिए पूर्णिमा , पुनर्वसु नक्षत्र , गुरुवार , अमृत चौघड़िया और गुरु की होरा अति लाभकारी और सिद्धिप्रद बताई गयी है ।।

 हम आप को ये भी बता देते हैं कि ये शुभ योग का मिलन कब हो रहा है ।। 

  सही तरीके से , सही मुहूर्त में पूजा तथा सिद्ध की हुई इंद्रजाल योग्य कीमत दे कर खरीदें और लाभ प्राप्त करें ।

  इंद्र जाल का प्रयोग--


 बताये गए मुहूर्त में स्नानादि कर के स्वेत वस्त्र पहनकर उन के आसन ( स्वेत  रक्त या पिला ) पर विराजमान हो जाये आप का मुख उत्तर दिशा में होना चाहिए । धुप , दिप  (शुद्ध घी का दीपक) प्रदीप्त करें । 

 सब से पहले फूल्स कैप A-4 साइज का अच्छा भोज पत्र लें उस पर आप की कुंडली  अनार - डाडम की डाली की कलम से बनानी है । श्याही केशर और जल से बनी हुई चाहिए । इस में थोड़ा अष्टांग मिला लें । फिर भोज पत्र पर कुंडली बना ले । उस के ऊपर इंद्रजाल चिपका लें । फिर दाहिनी ओर गोमती चक्र ओर बायीं ओर कोड़ी और शंख लगा लें ।  इंद्रजाल की ऊपर प्लास्टिक बैग में चनोठि , कुमकुम ,  हल्दी , अक्षत , कमल ककड़ी इकट्ठी डाल दें । इस कार्य पूर्ण होने के बाद उसे फोटो फ्रेम में बंद कर लें ये क्रिया 30 मिनट में कर लें इस बीच आसान ना छोडें । फिर दिए गए मंत्र की 11 माला करें । मंत्र जप चलता हो तब तक सुद्ध घी का दीपक जलता रहे ये निश्चित करें ।  

 ये मंत्र हम आप के घर या ऑफिस - कार्य स्थल के लिए दे रहें हैं । साथमें ये भी बता दें क़ि इस मंत्र से सिद्ध की हुई इंद्रजाल सिर्फ आपके मुख्य द्वार के अंदर  की side में ऊपर दिवार पर ही लगानी है । पूजा घर में लगाने के लिए विधि अलग होगी । 

 मंत्र---

 ॐ इंद्रजाल कामाख्या भगवती माता क्राम क्लिम श्रीम् श्रीम् मम धनं देहि देहि फट स्वाहा ।।

  हर महीने जब पुनर्वसु नक्षत्र का योग हो तब इस मंत्र की कम से कम 1 माला करनी जरुरी है । महीने में एक दिन पुनर्वसु नक्षत्र रहता है  
 संपर्क करें -- 

ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री-- उज्जैन...9039390067(वाट्सएप)..
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